शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

विजनरी लीडर : सरदार पटेल

सरदार पटेल अर्थात भारत के एक महान व्यक्तित्व सरदार बल्लवभाई पटेल| इन्हें ‘विजनरी लीडर’ (Visionary Leader) भी कहा गया| ‘विजन’ वाला ‘लीडर’, यानि एक ऐसा व्यक्ति जो सब चीजों में लोगों को ‘Lead’ (लीड) करे, यानी सबसे ‘आगे’ रखे| ‘विजन’ (Vision) भी एक ऐसा ही शब्द है, जो अपनी शाब्दिक ‘ढाँचागत संरचना’ में सामान्य ‘दृष्टि’ से अलग और उच्चतर अर्थ देता है| ‘दृष्टि’ (देखना) तो पांच ज्ञानेन्द्रियों में एक का अनुभव होता है, जो सभी सामान्य लोगों के पास होता है| लेकिन ‘विजनरी’ (Visionary) तो वह होता है, जो अपनी पाँचों सामान्य ज्ञानेंद्रियों के अतिरिक्त ‘मानसिक दृष्टि’ और ‘आध्यात्मिक दृष्टि’ रखता हो| ‘मानसिक’ प्रक्रिया ‘मन’ के स्तर पर विचारों के उत्पादन के लिए होता है, जबकि ‘आध्यात्मिक’ प्रक्रिया अपने ‘आत्म’ (मन एवं चित्त) को ‘अधि’ यानि ‘ऊपर अनन्त प्रज्ञा’ से जोड़ कर ‘अंतर्ज्ञान’ (Intuition) पाता है| स्विटजरलैंड के प्रसिद्ध दार्शनिक फर्डीनांड डी सौसुरे अपने ‘संरचनावाद’ में यही समझते हैं कि प्रत्येक शब्दों की अपनी एक विशिष्ट ढाँचा एवं संरचना होती है| इसीलिए सरदार पटेल को ‘दृष्टिवान  नेता’ नहीं कह कर एक ‘विजनरी लीडर’ कहा गया है| इन्हें हिंदी भाषा के ‘दृष्टिवान  नेता’ कहने से वह अर्थ संप्रेषित नहीं होता है, जो अंग्रेजी भाषा के ‘विजनरी लीडर’ से संचारित होता है|

तो सबसे अहम सवाल यह है कि सरदार पटेल ‘विजनरी लीडर’ कैसे हुए? ‘विजनरी’ वह व्यक्ति होता है, जो ‘मानसिक सक्षमताओं’ से उपलब्ध सूचनाओं,  विचारों. अनुभवों, भावनाओं और व्यवहारों का ‘सन्दर्भ’ एवं ‘पृष्ठभूमि’ के परिप्रेक्ष्य में आलोचनात्मक मूल्यांकन कर भविष्य को स्पष्ट देखता हो और उसके अनुसार पूर्व से तैयारी रखता हो| इससे ऐसे निष्कषों, निर्णयों, आयोजनों, एवं नियंत्रणों में वह ‘नवाचारी’ (Innovative) दृष्टिकोण अपनाता है| आध्यात्मिक शक्ति ‘आभास’ यानि ‘अंतर्ज्ञान’ (Intuitive) के रूप में अभी तक अनुपलब्ध रहे जानकारी यानि सूचनाओं को उपलब्ध कराता है| सरदार पटेल को मानसिक दृष्टि एवं आध्यात्मिक दृष्टि में उच्चतर स्तर के होने के कारण ही ‘विजनरी लीडर’ कहा गया है|

सरदार पटेल को इस बात का ज्ञान था और आभास भी था कि अन्य साम्राज्यवादियों की ही तरह ब्रिटिश साम्राज्यवादी भी अपना स्वरुप बदलने वाला है| ‘ऐतिहासिक शक्तियाँ’ ही इतिहास की धारा बदलती है, इन्हें इस बात का ध्यान था| ‘साम्राज्यवाद’ पहले ‘वणिकवाद’ के रूप में आया और उसने अपने साथ ‘उपनिवेशवाद’ भी लाया| फिर साम्राज्यवाद ने ‘वणिकवाद’ का चोला छोड़ कर ‘औद्योगिकवाद’ का स्वरुप धारित कर लिया| ‘उपनिवेशवाद’ के लिए ‘नव साम्राज्यवादियों’ को अतिरिक्त भौगोलिक भूभाग चाहिए था, और उसी के लिए विश्व ने दो दो विश्व युद्ध झेले| साम्राज्यवादियों के लिए यह अवश्यम्भावी हो गया था कि उन्हें अब अपने ‘उपनिवेशवादी’ स्वरुप को छोड़ देना पड़ेगा| लेकिन वे अपनी ‘साम्राज्यवादी हित’ को छोड़ने वाले नहीं थे| द्वितीय विश्व युद्ध का यह अनिवार्य परिणाम था कि सभी ‘उपनिवेशों’ को ‘राजनीतिक स्वतन्त्रता’ मिलनी थी| लेकिन ‘साम्राज्यवादी हित’ का स्वरुप अब ‘वित्तीय साम्राज्यवाद’ का होने वाला था| ऐसी स्थिति में ‘साम्राज्यवादी ब्रिटेन‘ एकीकृत भारत’ को स्वीकारना नहीं चाहता था, इसीलिए ब्रिटेन ने भारत की स्वतन्त्रता घोषित करने के साथ ही अपने सभी संरक्षित 565 भारतीय देशी रियासतों को भी स्वतंत्र घोषित कर दिया| ‘खंडित राष्ट्र’ पर ‘साम्राज्यवादी हित’ साधना साम्राज्यवादी शक्तियों के लिए एक लाभकारी स्थिति देता है| यह सब सरदार पटेल जैसा ही कोई ‘विजनरी नेतृत्व’ ही समझ सकता था|

वैश्विक राष्ट्रवादी आंदोलनों ने यूरोप को अनेकों ‘राष्ट्रीय राज्यों’ (National States) में विभाजित कर दिया, लेकिन ये सभी ‘राष्ट्र- राज्य’ (Nation - state) अब एक ‘यूरोपीय संघ’ बना कर एकल व्यवस्था की ओर अग्रसर हैं| भारत अनेक बड़े देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और चीन जैसा ‘बहु राष्ट्रीय – राज्य’ बनने जा रहा था| भारत को इन देशों की तरह ‘राज्य –राष्ट्र’ (State – Nation) बनना था, जो उस समय भी और आज भी निर्माणाधीन अवस्था में है| यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा कि राष्ट्रीय -राज्य’ (Nation –State) और ‘राज्य –राष्ट्र’ (State –Nation) अलग अलग अवधारणा है, तथा भारत एक ‘राज्य –राष्ट्र’ है| इसीलिए भारतीय संविधान सभा ने भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble) में ‘राष्ट्र की एकता (और अखंडता)’ सुनिश्चित करने की बात की है| यहाँ ‘देश’ या ‘राज्य’ या ‘प्रान्त’ की एकता सुनिश्चित करने की बात नहीं की गयी| यह ध्यान रखने की बात है| यह सब सरदार पटेल जैसा गृह मंत्री ही समझ सकता था| इसीलिए 565 रियासतों में से 564 रियासतों को भारत में मिलाकर एक अखंड भौगोलिक क्षेत्र के रुप में भारत का निर्माण करने में अपनी बड़ी अहम सूझ बुझ अपनायी| एक रियासत प्रधान मंत्री नेहरु के हस्तक्षेप से बाद भारत में बाद में शामिल हुआ, लेकिन उसमे विवाद अभी भी बना हुआ है| इस अखंड भारत के लिए भारत उस ‘विजनरी लीडर’ का सदैव आभारी रहेगा|

इस भौगोलिक एकीकरण के कई निहितार्थ हैं| इससे भारत अपने सैकड़ों पड़ोसियों से उलझने से बच गया| इतने देशों से राजनयिक सम्बन्ध एवं सैनिक व्यवस्था बनाना एक उबाऊ, तनावग्रस्त और अनावश्यक आर्थिक परेशानी होता| इस भौगोलिक एकीकरण ने आर्थिक समृद्धि के उद्भव एवं विकास के लिए आवश्यक ढाँचा और संरचना को मजबूत आधार दिया| आज का विस्तृत रेल, सड़क, बाँध व जलाशय, संचार एवं बिजली आदि का नेटवर्क के लिए आधारभूत अवसर संभव हुए| आज एक भारत और एक बाजार उसी ढाँचे पर अग्रसर है| यह एक महान ‘विजनरी लीडर’ के प्रयास का परिणाम रहा|

मैंने ऊपर के पैराग्राफ में भारत की ‘राजनीतिक स्वतन्त्रता’ की बात की है| ‘राजनीतिक स्वतन्त्रता’ से ‘राजनीतिक समाज’ (Political Society) को फायदा होता है, लेकिन इस ‘राजनीतिक स्वतन्त्रता’ से ‘नागरिक समाज’ (Civil Society) को कोई विशेष फायदा नहीं होता है| ‘राजनीतिक समाज’ वह समाज होता है, जिसका प्रशासन, पुलिस, सेना, शिक्षा, संस्कृति, मीडिया एवं न्यायपालिका पर नियंत्रण या प्रभाव रहता है| ‘राजनीतिक समाज’ के अलावे अन्य सामान्य जन गण ‘नागरिक समाज’ होता है| ‘नागरिक समाज’ को लाभ ‘राजनीतिक समाज’ को मिलने वाली समृद्धि के रिस जाने (Leakage/ Seepage) से मिलता है| इसे “समृद्धि का रिसना सिद्धांत” (The Seepage Theory of Prosperity) कहते हैं| यह सब बातें बीसवीं शताब्दी के तीसरे एवं चौथे दशक में वैश्विक थी, और सरदार पटेल इसे जानते थे| लेकिन गांधी जी की ह्त्या से सरदार पटेल अपने को सम्हाल नहीं सके और इस क्षेत्र में योजना अधूरी रह गयी|

 भारत जैसे विशाल भौगिलिक क्षेत्र एवं विविध संस्कृतियों को ‘अखंड राष्ट्र’ बनाए रखने के लिए प्रशासनिक ढाँचा पर विशेष ध्यान दिया| प्रशासन एवं पुलिस जैसे स्थानीय मामलों को संविधान की ‘राज्य सूची’ में शामिल करते हुए भी इनके पदाधिकारियों को केन्द्रीय सरकार के अधीन रखा| इसके लिए केन्द्रीय सरकार के अन्य पदाधिकारियों से भिन्न ‘अखिल भारतीय सेवाओं’ का गठन किया, जिसमे ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ एवं ‘भारतीय पुलिस सेवा’ का संवर्ग शामिल है| शासन एवं व्यवस्था का यह ‘स्टील ढाँचा’ (Steel Frame) आज भी उस महान विजनरी को सादर नमन करता है और सारा राष्ट्र उनका आभारी है|

स्वतंत्रता के समय भारत के तीन सतम्भ थे- गाँधी, पटेल एवं नेहरु| गाँधी की हत्या के बाद पटेल काफी आहत हो गये और वे हृदयाघात के पहले आक्रमण के शिकार हो गये| इस हत्या में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ का नाम आया| इस ‘संघ’ के संस्थापक और वैचारिक अधिष्ठाता डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की मृत्यु आजादी से पहले ही वर्ष 1940 में हो गयी थी और उनके मृत्यु के उपरान्त ही ‘संघ’ विवादित हो गया| परिणाम स्वरुप सरदार पटेल को इस पर कठोर प्रतिबन्ध भी लगाना पडा| शायद यह डॉ  हेडगेवार के विचारों से विचलन का परिणाम था| इस रुप में भी सरदार पटेल ‘विजनरी’ थे|

स्वतंत्र भारत को समय देने के लिए गाँधी और सरदार पटेल नहीं रहे| ये स्वतंत्रता संग्राम के दीवाने अपने ‘विजन’ को अंजाम देने के लिए उपलब्ध नहीं रहे| शायद यदि गाँधी जीवित रहते तो, तो सरदार पटेल भी जीवित रहते और उनके ‘भविष्य के दर्शन’ अपने कार्य रुप में दिखते| जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे के ‘परिप्रेक्ष्यवाद’ के अनुसार उनके व्यक्तित्व का मूल्याकन करना संभव है|

वर्ष 1970 में एक फिल्म बनी, नाम था – “सफ़र”| इस फिल्म में एक गाना है – ‘नदिया चले, चले रे धारा’| आप भी सुनिएगा| इस गाने में अंतिम पंक्ति का सार यह है – ‘समय की धारा इतनी तेज होती है कि, नाव तो नाव, नदी का किनारा भी बह जाता है’| सरदार पटेल जैसे विजनरी उस ‘समय की तेज धारा’ को पहचान लिया था और राष्ट्र हित और तत्कालीन परिप्रेक्ष्य में सरदार पटेल को कुछ मामलों में चुप रहना पडा| वह ‘विजनरी लीडर’ वर्ष 1950 में ही चले गये|  

मैं ऐसे ‘विजनरी लीडर’ को सादर प्रणाम करता हूँ|

आचार्य प्रवर निरंजन जी

दार्शनिक, शिक्षक एवं लेखक

अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान, बिहटा, पटना, बिहार|

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