रविवार, 30 अक्तूबर 2022

सरदार पटेल का ‘सरदारवाद

'सरदारवाद’ (Sardarismमहान राष्ट्रनायक सरदार वल्लभभाई पटेल का मानवता के प्रति और  भारतीय राष्ट्र के प्रति 'दर्शन का सार' (Essence of the Philosophy) है| यह सरदारवाद उनके जीवन दर्शन की समझ, मानवता और राष्ट्र के प्रति उनकी भावना और व्यवहार, एवं विकसित राष्ट्र के आर्थिक आधार के प्रति गंभीर चिंता का समन्वय है। 

उन्होंने भारत ‘देश’ (Country) को, भारतीय 'राज्य’ (State) को और भारतीय ‘राष्ट्र’ (Nation) को बहुत अच्छी तरह से समझा है| उन्होंने भारत देशको मजबूत करने के लिए उसका भौगोलिक एकीकरणकिया, जैसे बिस्मार्क ने जर्मनी का भौगोलिक एकीकरण किया था| किसी के भी अस्तित्व के लिए उसका भौतिक स्वरूप अनिवार्य होता है, जो एक देश के लिए भौगोलिक स्वरूप होता है। उन्होंने भारत राज्यको मजबूत करने के लिए संप्रभुता’ (Soverinity) की महत्ता समझकर आर्थिक सशक्तिकरणका भौतिक आधार तैयार किया| भारत के राष्ट्रनिर्माण के संदर्भ में इनका नजरिया विघटनकारी तत्वों के प्रति बहुत सख्त था| राष्ट्र ऐतिहासिक एकापन की भावना होती है, जो उस राष्ट्र के लोगों में होती है। उन्होंने भारत में लोकतंत्र’ (Democracy) और गणतंत्र’ (Republic) को सशक्त एवं समृद्ध बनाने के लिए आजादी के बाद शुरूआती कदम उठाया ही था, कि उन्हें इस दुनिया से ही विदा होना पड़ा|

आज भारत में लोकतंत्रका सफ़र प्रजातंत्रकी ओर बढ़ रहा है, जो राष्ट्र के लिए घातक है| ध्यान रहे कि लोकतंत्रमें सभी तंत्रों की निष्ठा आम लोगों’ की सम्प्रभुता के प्रति होती है, और राष्ट्र राज्य की सम्प्रभुता भी भारत के लोगों में ही निहित होती है। भारत के सभी अंगों और तंत्रों की यह भावनात्मक निष्ठा संविधानके माध्यम से अभिव्यक्त होती है, और इसीलिए भारतीय तंत्र लोकतंत्र कहलाता है, जबकि प्रजातंत्रमें सभी तंत्रों की निष्ठा राजाके प्रति होती हैजो समाज के कुछ खास वर्गों द्वारा घिरा होता है, और उन खास वर्गों के हितों की रक्षा को सामान्य प्रजा के हितों पर सदैव वरीयता देता हैप्रजा (Subject) का तंत्र वहीं होता है, जहाँ शासन का प्राधिकार राजा में होता है। अब सरदारवादको विस्तार से समझा जाय|

आज हम लोग भारत के राष्ट्र नियामक सरदार बल्लभभाई पटेल के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे| वे भारत के प्रथम उप प्रधान मंत्री एवं प्रथम गृह मंत्री भी हुए| इनका नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में खेड़ा आन्दोलन एवं बारडोली सत्याग्रह के प्रमुख नेतृत्वकर्ता के रूप में भी लिया जाता हैरियासत मंत्री के रूप में उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति तक भारत की कुल 565 रियासतों में से तीन रियासतों को छोड़कर सभी छोटी-बड़ी 562 रियासतों का विलीनीकरण (Assimilation) भारत में कर दिया| यह संभवतः विश्व इतिहास में सबसे अनूठा उदाहरण है, जहां इतने अल्प समय मेंइतने विशाल स्तर के भौगौलिक एवं राजनीतिक एकीकरण को सफलतापूर्वक संभव कर दिया गया। विलय की गयी रियासतों का यह इलाका कुल भारतीय भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 40% के बराबर था| स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तीन बची हुई रियासतों में से हैदराबाद एवं जूनागढ़ रियासत का विलीनीकरण उन्होंने देश के प्रथम गृह मंत्री के रूप में किया| तीसरी रियासत 'जम्मू कश्मीर' के मामले को तत्कालीन प्रधान मंत्री द्वारा अपने हाथ में ले लेने के कारण ही उन संबंधों की दुर्दशा हुई, जिसे  हर भारतीय जानता है, और जो आज भी भारत की एकता, अखंडता एवं आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर समस्या बना हुआ है| गोवा (भारत भूमि पर पुर्तगाली उपनिवेश) जैसे अन्य साम्राज्यवादी उपनिवेशों का भारत में विलीनीकरण का मामला भी इनके दृष्टिकोण में स्पष्ट एवं राष्ट्र अभिमुख था, परन्तु तत्कालीन नेतृत्व की असहमति के कारण इन सबका विलीनीकरण बहुत बाद में सम्भव हो सका| देश की एकता-अखंडता  एवं उसके एकीकरण के प्रति उनके इन्हीं दृढ, सख्त एवं स्पष्ट रुख  के कारण ही उन्हें भारतीय इतिहास में लौह पुरुषके नाम से जाना जाता है|

इस भौगोलिक एकीकरण के कई निहितार्थ हैं, जिसे स्थिरता के साथ समझा जाना चाहिए| इससे भारत अपने कई पड़ोसी देशों से उलझने से बच गया, जिसने कई फ्रन्ट पर सैन्य खर्च को बचा लिया| इस एकीकरण से पांच सौ पड़ोसी देशों से राजनयिक सम्बन्ध बनाना और उसे सम्हालना एक अतिरिक्त उबाऊ प्रयास होता| इस भौगोलिक एकीकरण ने आर्थिक समृद्धि के उद्भव एवं विकास को मजबूत आधार दिया, जो विस्तृत रेल, सड़क, बाँध व जलाशय, संचार, बिजली आदि के आधारभूत संरचना एवं ढांचे के रूप मे कई अन्य अवसर राष्ट्र को दिया| आप इस प्रयास को जर्मनी एवं इटली के एकीकरण और उसके सशक्तिकरण के रूप में समझ सकते हैं|

सरदार पटेल एक बहुत ही तीक्ष्ण एवं कुशाग्र बुद्धि के रणनीतिकार, बैरिस्टर एवं राजनेता थे| यदि स्पष्ट रूप से देखा जाय तो बहुमत इस स्पष्ट मत के पक्ष में है कि इनकी वकालत नेहरु की अपेक्षा ज्यादा चलती थीयानि ये नेहरु की अपेक्षा ज्यादा व्यवहारिक, लोकप्रिय, समझदार, समर्पित, समानुभूति (Empathy) रखने वाले एवं कुशल रणनीतिकार, बैरिस्टर एवं राजनेता थे| ‘सार्वजानिक पद’ (Public Post) इनकी प्राथमिकता में कभी नहीं रहा, बल्कि जनताएवं राष्ट्रही सदैव इनकी प्रथम वरीयता में रहे| इसीलिए इन्होने सदैव ही देश की  ‘जनताएवं राष्ट्रके हित में पदों को कभी महत्व नहीं दिया। इसी कारण जनताएवं राष्ट्रके लिए सर्वथा उपयुक्त होते हुए भी शासन का नेतृत्वदुसरे व्यक्ति के हाथों में दिए जाने में इन्होने कभी आपत्ति नहीं की| नेहरु देश के शासन प्रमुख हो गए, जबकि पटेल सबसे ज्यादा उपयुक्त थे| इसे उस समय की स्थितियों एवं परिस्थितियों को समझ कर ही स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है|

यदि हम उपनिवेशवाद (Colonialism) एवं साम्राज्यावाद (Imperialism) की अवधारणा, उनकी क्रिया विधियों एवं उनकी विभिन्न अवस्थाओं को समझ जाते हैं, तो हम महानायक सरदार पटेल की राष्ट्र के प्रति उनकी महत्वपूर्ण भूमिका एवं लक्ष्य को आसानी से समझ  सकते हैंउपनिवेशवाद एवं साम्राज्यावाद दोनों में आर्थिक, सामरिक एवं राजनीतिक हितों, यानि इन स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरों देशों के क्षेत्रों पर आधिपत्य जमाया जाता हैउपनिवेशवाद में आधिपत्य भौतिक रूप में स्पष्ट एवं दृश्य होता है, क्योंकि उपनिवेशवादी राष्ट्रवहां स्वयं उपस्थित होता है| यानि उपनिवेशवादी राष्ट्रअपने उपनिवेश में उसके शासन व्यवस्था, अर्थ व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था एवं सैन्य व्यवस्था को अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखता हैजबकि साम्राज्यावाद में ऐसा आवश्यक नहीं है, अर्थात  साम्राज्यवाद की बदलती अवस्था के अनुरूप इसका  स्वरूप एवं प्रकृति बदलता रहता है| इसके लिए यानि साम्राज्यवाद के लिए साम्राज्यवादी देश को उस नियंत्रित देश की शासन व्यवस्था, अर्थ व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था एवं सैन्य व्यवस्था को प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखने की बाध्यता नहीं होती है

उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद दोनों की क्रियाविधि, प्रसार एवं समापन अलग अलग तरीकों से होता रहा| इसीलिए यूरोपीय देशों का अफ्रीका, आस्ट्रेलेशिया (आस्ट्रेलिया एवं अन्य) एवं अमेरिकी महाद्वीप में पहले उपनिवेशवाद स्थापित हुआ और एशिया एवं भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में पहले साम्राज्यवाद स्थापित हुआ| भारत में पहले साम्राज्यवाद का प्राथमिक स्वरूप आया, फिर उपनिवेशवाद के साथ- साथ साम्राज्यवाद का दूसरा स्वरूप आया| द्वितीय युद्ध के बाद साम्राज्यवाद के तीसरे स्वरूप के अनिवार्य स्वरूप का अवतार हुआ और इसके साथ उपनिवेशवाद की आवश्यकता नहीं थी| उपनिवेशवाद या तो पूर्णतया उपस्थित रहा, या स्पष्टतया अपने वजूद में ही नहीं रहा, परन्तु इसके परिवर्तित मौलिक स्वरूप का उदाहरण नहीं मिलता है|

साम्राज्यवाद के प्रथम चरण में मैं ‘वणिक साम्राज्यवाद’ (Mercantile Imperialism) को रखता हूँ, जिसमें व्यापारिक सामानों की खरीद एक स्थान से करके, दूसरे स्थान पर उसकी बिक्री की जाती रही, और लाभ प्राप्त किया जाता रहा| इस अवस्था में साम्राज्यवादियों को सिर्फ इसी स्वतन्त्रता की आवश्यकता थी, यानि सिर्फ व्यापार करने की स्वतंत्रता एवं एकाधिकार की ही आवश्यकता रही। जब तक आवश्यक नहीं हो, स्थानीय शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप भी नहीं किया जाना इसकी अलग विशिष्टता रही

लेकिन यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति की आवश्यकताओं ने साम्राज्यवाद की दूसरी अवस्था को ला दिया, जिसे ‘औद्योगिक साम्राज्यवाद‘ (Industrial Imperialism) कहा गयाइसमें उद्योगों के लिए कच्चा माल (Raw Material) का स्रोत, मशीन चलाने के लिए ईंधन (Fuel) एवं उत्पादित माल की खपत के लिए बाजार की आवश्यकता हो गई| इसने उपनिवेशों  की स्थापना की अतिरिक्त आवश्यकता को जन्म दे दिया| इस तरह उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद दोनों की मौजूदगी एक साथ हो गई

लेकिन साम्राज्यवादी हितों के लिए हुए विश्व युद्धों ने इसके इस संयुक्त स्वरूप को भी नष्ट कर दिया| मतलब यह कि अब उपनिवेशवाद की आवश्यकता नहीं रह गई थी, क्योंकि औद्योगिक साम्राज्यवादभी अब वित्तीय साम्राज्यवाद’ (Financial Imperialism) में बदल गयावित्तीय साम्राज्यवाद में साम्राज्यवादियों की प्राथमिकता सिर्फ अपने वित्तीय निवेश और उनके लाभों की निरंतरता एवं उसकी सुरक्षा तक सीमित रही। साम्राज्यवादियों के इन स्वरूपों को सरदार पटेल की तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता समझ रही थी, और इसीलिए उन्होंने साम्राज्यवादियों द्वारा जानबूझकर रियासतों को दी गई स्वतंत्रता की मंशा को भांप लिया था।

सामान्यतः हमलोग बाजार की शक्तियों को यानि आर्थिक शक्तियों के बदलते स्वरूप और क्रिया विधि को नहीं समझना चाहते, परन्तु जीवन के संदर्भ में इस शक्तिशाली क्रिया-विधि एवं स्वरूप को समझना आवश्यक है| यह सब कुछ उपभोग (Consumption), उत्पादन (Production), वितरण (Distribution), एवं विनिमय (Exchange) के साधनों तथा  शक्तियों एवं उनके अंतर्संबंधों के द्वारा संचालित, नियंत्रित, नियमित एवं प्रभावित होता है| यह भी सही है, कि प्रत्येक देशों के स्वतन्त्रता संग्राम ने इन साम्राज्यवादी देशों पर उपनिवेश के त्याग के लिए अतिरिक्त दबाव बनाया, परन्तु इन देशों की स्वतंत्रता में वित्तीय साम्राज्यवाद की प्रमुख एवं महत्वपूर्ण भूमिका की उपेक्षा करना स्पष्टतया नादानीहै| उपनिवेशवाद के समाप्त होने को ही साम्राज्यवाद की समाप्ति समझ लेना किसी का भोलापनहो सकता हैलेकिन यह सब सरदार पटेल समझते थे, और इसी कारण उनको नेतृत्व सौपने में बहानेबाजी  की गई| इस बहानेबाजी में साम्राज्यवादियों ने भी सफल खेल खेला।

कुछ भारतीय राजनेताओं ने व्यक्तिगत पदों को बहुत ज्यादा महत्व दिया, और उनकी तथाकथित नादानी से साम्राज्यवादियों को कतिपय महत्वपूर्ण सफलता मिल ही गयीभारत माता को खंडित कर दिया गया, और उसके दुष्प्रभाव अभी तक  स्वतंत्र भारत में चारो तरफ जारी हैं। फिर भी पटेल ने साम्राज्यवादियों के एक महत्वपूर्ण मनसूबे को ध्वस्त कर ही दिया, जो 562 रियासतों के विलीनीकरण के रूप में सम्पन्न हुआ15 अगस्त 1947 को भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद समाप्त हो गया और तत्कालीन साम्राज्यवाद पूरी तरह से वित्तीय साम्राज्यवादमें बदल गयासरदार पटेल की उत्तरजीविता (Survival) भारतीय राष्ट्र का कुछ दूसरा ही स्वरूप प्रस्तुत करती, जो उनके अल्प अवधि के कार्यकाल में संभव एवं दृष्टिगोचर नहीं हो सका

साम्राज्यवादियों का वित्तीय निवेश (Financial Investment) इस देश में सुरक्षित हो गयाअब तो यह भी आरोप लगाए जाते हैं, कि देश की संप्रभुता अनेक समझौतों, संगठनों एवं शर्तों में दब गयी है। साम्राज्यवाद (सूचना यानि डाटा साम्राज्यवाद) के बदलते स्वरूप में आज देश के शासनाध्यक्ष (Head of the Government) मात्र अपने देश का प्रबंधक (Manager) साबित हो रहे हैं| सरदार पटेल इस भूमिका को बर्दास्त नहीं कर सकते थे, और शायद इसी पूर्वाभास एवं उनकी राजनीतिक विवशता ने उन्हें आन्तरिकरूप से तोड़ दिया या इसी तरह का कोई अन्य कारक उन पर हावी हो गया, जो अनुसंधान का विषय हो सकता है|

सरदार पटेल ने भारत जैसे एक 'परम्परागत देश' (Traditional Country) को, जो अनेक अलग-अलग देशों का एक  वृहत् देश समूहथा, उसे एक सशक्त राष्ट्र (Union of Nations) में बदलने का सफल प्रयास किया| हालाँकि शुरूआती अवस्था में ही सरदार का महाप्रस्थान देश, राष्ट्र एवं मानवता को अपूर्णीय क्षति दे दिया| एक सशक्त देश एवं राष्ट्र की पहली मौलिक एवं प्राथमिक शर्त भौगोलिक एकीकरण होती है, जिसे इन्होंने बखूबी निभाया| हमें ज्ञात होना चाहिए कि एक भौगोलिक अस्तित्व में ही कोई वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विकास हो सकता है| एक सशक्त राष्ट्र में आपसी घृणा एवं हिंसा को जड़ से समाप्त” (Root out hate and violence) करने के लिए ही 1948 में  उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबन्ध लगा दिया| यही इनकी राष्ट्रके प्रति चिंता एवं अवधारणा को स्पष्ट करता है| वास्तव में किसी भी समझदार, संपन्न एवं सशक्त राष्ट्र में आपसी घृणा एवं हिंसाको कोई स्थान नहीं मिल सकताऐसे ही संकट के समय में हर समझदार नागरिक को सरदार याद आते हैं|

ऐतिहासिक एकत्व की भावना से संगठित समाज ही एक राष्ट्र कहलाता है| उस समय कृषक एवं कृषि ही राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण थे, और सरदार का पूरा ध्यान, विश्वास एवं समानुभूति (Empathy) कृषकों के लिए रहीकृषक ही उस समय देश की मुख्य जनसंख्या थी, यही मुख्य अर्थव्यवस्था थी, यही राष्ट्रीय शक्ति थी, यही समय की समझदारी थी, यही विकास का तकाजा था, यही सम्पन्नता का मूल मंत्र था और यही राष्ट्रवाद था| लेकिन अब इस राष्ट्रवाद की अवधारणा ही बदल दी गई है| अब तो राष्ट्रवाद का खतरनाक दुरूपयोग भी किया जाता है|अब तो यह आरोप लगाया जाता है कि जब जनमत रोटी मांगता है, रोजगार मांगता है, शिक्षा और चिकित्सा मांगता है, तो  उसे राष्ट्रवाद’ (Nationalism) की नशीली दवा पिलाई जाती है, और उसे होश में नहीं रहने दिया जाता है|अब तो राष्ट्रवाद की नव-परिभाषा संकीर्ण सम्प्रदायवाद, वेशभूषा, खानपान एवं नाम के स्वरूपों में सिमट गई है| सरदार शायद कुछ दिन और रहते या सरदार ही राष्ट्र की प्रमुख भूमिका में होते, तो शायद यह राष्ट्र अपने प्राचीन गौरव के साथ ही आज विश्व व्यवस्था (World Order) में पहले स्थान पर होताअपने वर्तमान 'सुपर पड़ोसी (Super neighbour)' चीन (अब दुनिया की एक सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक एवं सैन्य महाशक्ति) के संदर्भ में आज हम इस बात को भली-भांति समझ सकते हैं।

सरदार पटेल के सरदारवादको आज समेकित रूप में समझना आवश्यक है| यह अवधारणाभारत को सशक्त, समृद्ध एवं अग्रणी बना सकता है, यदि इस सरदारवादको सम्यक ढंग से समझकर अनुपालित किया जायसरदार पटेल भारत देश, राज्य और राष्ट्र को सम्पूर्ण विश्व में भारत को ही "सरदार" बना देना चाहते थे। ऐसी ही स्थितियों और परिस्थितियों में महामानव, लौह पुरुष सरदार पटेल सदैव याद आते हैं| मैं उनको बार-बार सादर नमन करता हूँ

निरंजन सिन्हा 

आचार्य प्रवर निरंजन

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सरदारवाद भारत वर्ष को नित नयीं व उल्लेखनीय ऊंचाई तक ले जाने मेें पूर्णतया सक्षम है 🙏🌱

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