सोमवार, 24 नवंबर 2025

नीतीश कुमार का विकास

वैसे मुझे इस आलेख का शीर्षक ‘नीतीश कुमार का विकास’ नहीं देना चाहिए था, परन्तु इसी बहाने अविकसित क्षेत्रों के ‘विकास माडल’ पर एक गंभीर विमर्श किया जा सकता है| यहाँ यह भी स्पष्ट हो जाना चाहिए कि मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूँ, इसीलिए इस आलेख में किसी राजनीतिक झुकाव पर आपकी निगाहें नहीं होनी चाहिए| मैं भी उसी क्षेत्र का हूँ, जिस छोटे भौगोलिक क्षेत्र (नालन्दा) से माननीय नीतीश कुमार जी हैं| नीतीश कुमार भारत के बिहार प्रान्त के माननीय मुख्य मन्त्री है|

यह वही बिहार है, जो कभी ऐतिहासिक मगध साम्राज्य का ‘कोर’ भौगोलिक क्षेत्र रहा| यह कोर क्षेत्र ऐसा था, जहाँ से व्यवस्थित ‘ज्ञान’ एवं ‘बुद्धि’ का वैश्विक प्रकाश फैलना शुरू हुआ| इन व्यवस्थित ‘ज्ञान’ एवं ‘बुद्धि’ के प्रकाश केन्द्रों को ‘विहार’ (Vihar)  के नाम से जाना जाता था| इन्हीं ‘विहारों’ की अधिकता के कारण ही यह क्षेत्र समय के साथ ‘बिहार’ (Bihar) हो गया| इस क्षेत्र के इसी प्रसिद्धि के बाद कपिलवस्तु के सिद्धार्थ गोतम अपने अग्रेतर एवं उच्चतर ज्ञानार्जन के लिए अपने गृह त्याग के बाद सबसे पहले राजगृह पहुंचे थे| इसी बाद, वे व्यवस्थित ‘ज्ञान’ एवं ‘बुद्धि’ के भारतीय प्रकाश -परम्परा में 28वें बुद्ध बने| वर्तमान के ‘विकास’ और ‘विकास की पीड़ा’ को समझने के लिए पूर्व की स्थिति को भी समझना चाहिए, जैसा कि महान वैज्ञानिक गैलेलियो अपने ‘सापेक्षवाद’ (Relativity) में समझाते हैं|

मध्य युग में सामन्तवाद बिहार सहित भारत में अपने विविध स्वरूपों में रूपांतरित हुआ| इस रूपांतरण में भी बिहार का यह क्षेत्र आर्थिक रुप में समृद्ध रहा| इसी समृद्धि के कारण यहाँ स्थापित यूरोपीय व्यापारिक कम्पनी सम्पूर्ण भारत पर काबिज हो सका| वर्ष 1793 में ब्रिटिश व्यवस्था के भू राजस्व के ‘स्थायी बंदोवस्त’ (Permanent Settlement) के साथ मध्य युगीन विकसित सामन्ती व्यवस्था बिहार में ‘जमींदारी व्यवस्था’ के रूप में और सुदृढ़ हो गयी| इस ‘जमींदारी व्यवस्था’ के अत्यधिक शोषण के कारण बिहार क्षेत्र बर्बाद हो गया| यह बिहार तत्कालीन बंगाल में ओड़िसा और झारखण्ड सहित शामिल था| ब्रिटिश काल के शोषण के बाद ‘भाडा समानीकरण नीति’ और कोयला के लिए ‘मात्रा’ आधारित रायल्टी (जबकि अन्य खनिजों के लिए मूल्य आधारित रायल्टी नीयत था) की नीति ने बिहार को विकास के लिए प्रोत्साहित करने का माहौल बनाने नहीं दिया| यह ‘सोया हुआ बिहार’ माननीय लालू प्रसाद जी के आगमन तक यथावत पड़ा हुआ था| लेकिन हमें यहाँ रुक कर व्यवस्था के विकास प्रणाली को समझ लेना चाहिए|

कोई भी व्यवस्था –तंत्र में तीन स्तर पर कार्यरत रहता है| इन स्तरों को समझने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक युग में ‘कम्प्यूटर तंत्र’ के अनुरूप शब्दावली का उपयोग किया जाना उचित होगा| यह स्तर ‘हार्डवेयर’, ‘साफ्टवेयर’ और ‘फिज़ावेयर’ है| व्यवस्था –तंत्र का जो स्तर हमें सामान्य ज्ञानेन्द्रियों से दिखती है, जो भौतिक पदार्थो से निर्मित होता है, और जो कार्यो की अभिव्यक्ति का मुख्य आधार होता है, उसे व्यवस्था का ‘हार्डवेयर’ कहते हैं| इस हार्डवेयर में भवन, सड़क, पुल, विद्युत एवं संचार तंत्र ढाँचा आदि आदि शामिल होता है, जो विकास के लिए भौतिक आधार बनता है| ‘साफ्टवेयर’ की व्यवस्था का यह स्तर हमें सामान्यत: सामान्य ज्ञानेन्द्रियों से नहीं दिखती है और उसे समझने देखने के लिए हमें मानसिक दृष्टि की आवश्यकता होती है| यह स्तर भौतिक पदार्थों से निर्मित नहीं होती है, लेकिन सारे तंत्र को संचालित एवं नियमित करती है| इस साफ्टवेयर में वैधानिक नीतियाँ, नियम, प्रशासन, शिक्षा, चिकित्सा, प्रबन्धन, धर्म आदि शामिल रहता है| सामान्यत: सभी व्यवस्थायें ऐसे ही चलती है|

इस ‘हार्डवेयर’ (Hardware) और ‘साफ्टवेयर’ (Software) के अतिरिक्त एक अदृश्य परन्तु सबसे महत्वपूर्ण ‘फिज़ावेयर’ (Fizaware) होता है| यही ‘हार्डवेयर’ और ‘साफ्टवेयर’ को पैदा करता है और आधार देता है| इसे मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से समझा जाता है| यह ‘फिज़ावेयर’ संस्कृति के क्षेत्र में काम करता है| यह ‘फिज़ावेयर’ ही उस वर्तमान संस्कृति का संवर्धन करता है| ध्यान रहे कि यूरोप में ‘पुनर्जागरण’ किसी हार्डवेयर या साफ्टवेयर के किसी प्रोजेक्ट के कारण नहीं आया, बल्कि वह ‘फिज़ावेयर’ के परिणाम स्वरुप आया| यह ‘फिज़ावेयर’ उस क्षेत्र में, उस सांस्कृतिक समूह में, या उस समाज में एक रचनात्मकता एवं सकारात्मकता का फिज़ा बनाता है| दरअसल यह फिज़ावेयर उस वातावरण में फिज़ा यानि माहौल (situation) बनाना होता है| मुझे इसका कोई अंग्रेजी शब्द नहीं मिला, जो भावार्थ को समुचित एवं पर्याप्त ढंग से अभिव्यक्ति दे सके|

नीत्शे का परिप्रेक्ष्यवाद हमें यह समझाता है कि कोई भी बात बिना परिप्रेक्ष्य के समझना अधूरा होता है| इसीलिए मैंने ऊपर बिहार का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य बताया| लेकिन नीतीश कुमार पर कोई बात बिना लालू प्रसाद के परिप्रेक्ष्य का अधूरा है| बिहार के ऊपर वर्णित परिप्रेक्ष्य में, लालू प्रसाद का पदार्पण हुआ| यह बिहार-तंत्र अभी भी सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा हुआ था| लालू प्रसाद जी ने बिहार में ‘सामाजिक फिज़ावेयर’ को काफी मजबूत किया और इसका उपयोग किया| लेकिन ये अन्य फिज़ावेयरों’ की अवधारणा को और उनकी क्रियाविधियों को नहीं समझ पाए| परिणाम यह हुआ कि इनके परिप्रेक्ष्य में नीतीश कुमार का आगमन हुआ|

नीतीश कुमार जी अपने प्रारंभिक काल में बिहार-तंत्र के हार्डवेयर की व्यवस्था पर काफी काम किए और यह कार्य आज भी जारी है| इसके अतिरिक्त इन्होने सामाजिक और शैक्षणिक साफ्टवेयर पर भी काफी कार्य किया है| लेकिन इतना स्पष्ट है कि इनके सलाहकार विशेषज्ञ आर्थिक एवं सांस्कृतिक साफ्टवेयर को और उनकी क्रियाविधि को नहीं समझ पाए हैं| इनके सलाहकार विशेषज्ञ ‘राजनीतिक फिज़ावेयर’ के सम्बन्ध में माहिर तो हैं, लेकिन सांस्कृतिक एवं आर्थिक फिज़ावेयर के सम्बन्ध में एकदम भावशून्य लगते हैं|

प्रसिद्ध आर्थिक विशेषज्ञ अमर्त्य सेन को ‘विकास’ की अवधारणा के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया| इन्हीं के अवधारणा को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने अपनाया| इन्होने इसके लिए ‘सक्षमता उपागम’ (Capability Approach) को अपनाया| इसके अनुसार असल विकास लोगों की सक्षमता में वृद्धि से होती है, यानि क्षमता में वृद्धि करने में है| ‘मानव विकास सूचकांक’ (HDI) में ‘शिक्षा’, ‘स्वास्थ्य’, एवं ‘आय’ को प्रमुखता दिया गया है| यहाँ ‘आय’ लोगों को सक्षम बना कर बढ़ाना है, नहीं कि धन के दान, अनुदान, या तथाकथित कोई आर्थिक सहयोग की अधिकता से ‘आय’ बढ़ाना| इसलिए आज बिहार प्रति व्यक्ति आय में भारत में सबसे निम्नतम स्थान पर है| यह भी उल्लेखनीय होगा कि माननीय अमर्त्य सेन भी अपने सक्षमता –उपागम के साथ संस्कृति के फिज़ावेयर पर ध्यान नहीं दे पाए, और इसिलिए विश्व की 750 करोड़ आबादी अपने व्यक्तित्व के पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए अभी तक ‘विकास’ के लिए लालायित है|   

नीति आयोग ने बड़े एवं मंझोले राज्यों की सूची में कुल अठारह राज्य शामिल किए हैं| आज भी बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश विकास के भिन्न भिन्न सूचकांकों में इन 18 राज्यों में 16वें, 17वें और 18वें स्थान के लिए प्रतियोगिता में हैं| ध्यान रहे कि हार्डवेयर में विकास को ‘तंत्र का वृद्धि’ कहते हैं, लेकिन यह सम्पूर्ण बिहार-तंत्र का विकास नहीं है| इसी तरह, साफ्टवेयर में विकास को भी ‘तंत्र का वृद्धि’ ही कहा जाना चाहिए| इनके काल में प्रत्येक हार्डवेयर और कुछ साफ्टवेयर में काफी बेहतर कार्य हुए हैं, जबकि कई साफ्टवेयर के क्षेत्र में अभी भी विशेष काम किया जाना अपेक्षित है| इसीलिए ये ‘वृद्धियाँ’ (Growths) अभी तक ‘विकास’ (Development) में नहीं बदल सकी है| लेकिन इनके ‘विकास सलाहकारों’ का ध्यान अभी तक सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्र के ‘फिज़ावेयर’ पर नहीं गया| सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्र के ‘फिज़ावेयर’ पर किए गये कार्यों का प्रभाव शताब्दियों और सहत्राब्दियों तक रहता है| ऐसे ही व्यक्ति इतिहास पुरुष बनते हैं|

मैं इनके विकास की अवधारणा का नकारात्मक आलोचना नहीं कर रहा हूँ| मैं भी चाहता हूँ कि इनका नाम इतिहास के सन्दर्भ में सिर्फ ‘लम्बे अवधि के शासन काल’ के लिए दर्ज नहीं हो, बल्कि बिहार को रूपांतरित करने एवं अग्रणी क्षेत्र बनाने वाले के रूप में याद किये जाएँ| इनके विकास सलाहकारों को फिज़ावेयर की अवधारणा, महत्त्व और इसकी क्रिया विधि को समझाना चाहिए|

आचार्य प्रवर निरंजन जी

दार्शनिक, शिक्षक एवं लेखक

अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान,

हर्बल सिटी, एयरफ़ोर्स स्टेशन रोड, देवकुली, बिहटा, पटना, भारत| 

नीतीश कुमार का विकास

वैसे मुझे इस आलेख का शीर्षक ‘नीतीश कुमार का विकास’ नहीं देना चाहिए था, परन्तु इसी बहाने अविकसित क्षेत्रों के ‘विकास माडल’ पर एक गंभीर विमर्श...