सामाजिक पाकेटमार
होते हैं और
सांस्कृतिक पाकेटमार भी होते हैं| और
राजनीतिक पाकेटमार भी होते हैं|
पाकेटमार किसे कहते हैं? यह पाकेटमारी एक चोरी का स्वरूप होता है, जिसमें किसी दूसरे के पाकेट से या दूसरे का कोई मूल्यवान सामान चुपके से चुरा लिया जाता है| अत: पाकेटमारी एक प्रक्रिया हुआ| चूँकि यह चोरी की प्रक्रिया है, और इसीलिए इस प्रक्रिया को चुपके से करना होता है| अर्थात जिसका सामान चुराना है, उसे इसका पता नहीं चलना चाहिए, कम से कम चोरों की तो यही नीयत होती है| यह तो समाज की सजगता, समझदारी और सतर्कता होगी, कि वह किसी को अपना सामान चोरी नहीं करने दे| वैसे उपरोक्त वर्णित विविध पाकेटमारियां एक ऊंचे दर्जे की कला हैं, इसलिए उनमें काफी निपुणता की आवश्यकता होती है। इसीलिए आम जनता द्वारा उपरोक्त किस्म की पाकेटमारी में शामिल पाकेटमारों की गणना समाज के काफी सफल व्यक्तियों में की जाती है। अपनी कुशाग्र बुद्धि की वजह से ऐसे पाकेटमार अपने उद्देश्य में प्रायः सफल भी होते हैं|
लेकिन पाकेटमारी को प्रायः एक नकारात्मक कार्य माना जाता है, और साथ ही समाज विरोधी भी माना जाता है। इसीलिए पाकेटमारी को सदैव एक निंदनीय एवं घृणित कार्य समझा गया है| इसीलिए ऐसे पाकेटमारों को चोरों की तरह नीच और चरित्रहीन भी कहा जाता है| ऐसे पाकेटमारों को जनसाधारण की भाषा में पाकिटमार, जेबकतरा, गिरहकट भी कहा जाता है, और अंग्रेजी में Pickpoker कहा जाता है|
क्या आपने कभी पाकेटमारों की कार्यप्रणाली पर ध्यान दिया है? आइए हम इनकी कार्यप्रणाली पर एक बार सरसरी निगाह डालते हैं| सामान्य पाकेटमार अकेले भी कमाल दिखाते हैं, लेकिन समझदार और कुशाग्र बुद्धि वाले पाकेटमारों का एक व्यवस्थित, सुसंगठित, सतर्क, कुशल और निपुण गिरोह होता है| जब कभी कोई पाकेटमार पाकेटमारी करते पकड़ा जाता है, तो उसके संगठन के सदस्य तत्काल सक्रिय हो जाते हैं| पब्लिक जब उसे पकड़ कर पीटने लगती है, तो तत्काल उसके नजदीकी सदस्य उस पकड़े गए पाकेटमार के विरुद्ध अपनी आक्रामकता की अभिव्यक्ति तेज एवं मुखर कर देते हैं| ये नजदीकी सदस्य अपनी शारीरिक आक्रामकता को तेज कर देते हैं, चीखने चिल्लाने को पूरी ताकत से व्यक्त करते हैं, मानो उस पकड़े गए पाकेटमार के सबसे बड़े एवं सख्त दुश्मन यही लोग हैं| उस समय ऐसा लगता है, कि वे लोग उस पाकेटमार को कच्चा ही चबा जायेंगे| धीरे -धीरे उसके आसपास उसके गिरोह के अन्य सदस्य भी जुट जाते हैं, और भयानक दंड देने के नाम पर उसे आम पब्लिक से दूर ले जाते हैं, और अंतत: उस पाकेटमार को पब्लिक के हाथों पीटने से बचा लेते हैं| पाकेटमारी की दूसरी विधि में ये पाकेटमार कभी-कभी अपने लक्षित व्यक्ति या समूह के सामने कोई तमाशा भी करने लगते हैं, ताकि उनका ध्यान भटका कर पाकेटमारी को कुशलतापूर्वक अंजाम दिया जा सके| कभी कभी पाकेटमार लोग सहयोग देने के नाम पर यानि नाटक करके भी पाकेटमारी करते हैं|
अब आप सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के पाकेटमारों की तरफ ध्यान दीजिए| जब शासन या व्यवस्था या सामन्ती मानसिकता वाला गिरोह किसी समाज के हितों के विपरीत कोई कार्य करता हुआ दिखता है, तो समाज में विरोध के स्वर उभरने लगते हैं और विपरीत प्रतिक्रया आने लगती है| संभावना यह होती है कि समाज में कोई ऐसा नया नेतृत्व उभर जाय, जो शासन को कोई पाठ पढ़ा दे, या उस व्यवस्था को ही बदल दे, या उस सामन्ती मानसिकता या प्रवृति को ही बदल जाने को बाध्य कर दे| तब यथास्थितिवादी शक्तियां चाहती हैं, कि कोई मित्र उन उभरते हुए नेतृत्व को रोक दे या उसे विरूपित (Deformed) कर दे, या उसकी क्रिया को विचलित/पथभ्रष्ट (Deviate) कर दे, यानि उसकी दिशा ही मोड़ (Divert) दे| ऐसी स्थिति में उन यथास्थितिवादी शक्तियों के वे मित्र ही काम आते हैं, जो ऊपरी तौर पर समाज में उन शक्तियों या व्यवस्था का सशक्त विरोध करते हुए दिखते हैं, और सामान्य जनों को यह आभास दिलाते हैं, कि वे ही उनके असली शुभ चिन्तक हैं| जबकि ये उन शक्तियों या व्यवस्था का सशक्त विरोध करते दिखते ऐसे नेता एवं संगठन के लोग अप्रत्यक्ष तौर पर उन्हीं यथास्थितिवादी शक्तियों के शुभचिंतक होते हैं, एजेंट होते है| ये लोग समाज से अपने ऐसे संबंधों को छुपा कर रखते हैं, और अपने आकाओं से चुपके-चुपके चोर की तरह मिलते हैं, जैसे साधारण पाकेटमार अपने आकाओं से मिलते हैं|
ऐसे में इनको ही सामाजिक एवं राजनीतिक पाकेटमारी करने का सर्वाधिक सुनहरा अवसर उपलब्ध हो जाता है| इस संदर्भ में आपको समाज में प्रतिक्रिया देने वाले चीखने-चिल्लाने वालों का एक अलग समूह भी दिख जाएगा, जो विरोध का बड़ा नाटक करता है| इन पाकेटमारों की तरह ये सामाजिक एवं राजनीतिक पाकेटमार सबसे ज्यादा जोर आवाज से, तीखे स्वर में, खतरनाक भाव में, एवं घातक मुद्रा में आक्रामक दिखते और दिखाते हैं| ये सामाजिक प्रतिक्रिया की सामान्य भावना को काफी आक्रामकता देता हुआ दिखता है, ताकि उनसे ज्यादा कोई आक्रामक नहीं दिखे और समाज के बहुसंख्यक उनके समर्थन में रहें| इस तरह व्यवस्था से असंतुष्ट और उसका विरोध करने वाली बहुसंख्यक आबादी या पीड़ित बहुसंख्यक जनता ऐसे एजेंटों के समर्थन में हो जाती है| ये एजेंट यानि सामाजिक पाकेटमार “प्रतिक्रिया देने वाले समाज” की बहुसंख्यक जनता के धन का, संसाधन का, समय का, ऊर्जा का, उत्साह का और जवानी का बेशर्मी और बेरहमी से शोषण करते हैं, दोहन करते हैं, ताकि इन मजलूमों के बीच से उभरती हुई उनकी वास्तविक शुभचिंतक क्रान्तिकारी शक्तियाँ उनके (एजेंटों के) आकाओं को ही उलट- पलट नहीं दें| ये पाकेटमार उन सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों को ही, जो स्पष्टतया विरोध का मुद्दा होते हैं, हड़प लेते हैं, और फिर एक शातिर घाघ की तरह जानबूझकर शान्त हो जाते हैं|
इन राजनीतिक एवं सामाजिक पाकेटमारों का अपना कोई सकारात्मक और सृजनात्मक एजेंडा या कार्यक्रम नहीं होता है| इनका एकमात्र एजेंडा विरोध के दिखावे का होता है, और उन मुद्दों को हड़पने का होता है, जो इनके आकाओं के अस्तित्व के लिए खतरनाक हो सकते हैं| ध्यान रहें कि इनका विरोध का दिखावा भी ज्यादातर भावनात्मक मुद्दों तक ही सीमित होता है। ये पाकेटमार आमजनता के किन्हीं प्रमुख एवं मौलिक मुद्दों पर नहीं जाते हैं| सामान्य जनता चूँकि सतही मुद्दों को ही समझ पाने में सक्षम होती है, और भावनात्माक मुद्दों से ही मुख्यतया संचालित होती है, इसी कारण रणनीति के तौर पर, ये पाकेटमार भी खुद को इन सतही एवं भावनात्मक मुद्दों तक ही अपने को सीमित रखते हैं| इनका मुख्य एवं मूल एजेंडा अपने आका राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन के विरुद्ध हो रहे विरोधों को हल्का करना, पतला (Dilute) करना, समाप्त करना, दिशाविहीन (Deviate) करना, और गलत दिशा में भटका देना मात्र होता है| ये यह भी ध्यान रखते हैं कि अपने आका राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन के विरुद्ध खड़े हुए समूहों की उर्जा, धन, संसाधन, समय और उत्साह को अपनी ओर समाहित (Absorb) कर लें, यानि अपनी ओर झुका लें| ये युवाओं की जवानी को भी विरोध की आग में झोंक देते हैं, ताकि वे पढ़-लिख कर तार्किक एवं समझदार नहीं बन सकें| अपने इर्द-गिर्द फैले हुए इन सामाजिक एवं राजनीतिक पाकेटमारों पर नजर डालिए, और इनकी कार्यप्रणाली को भली-भांति समझिए|
इन्हें पहचाना
बहुत आसान है|
ये पशुवत
विरोध की सामान्य सीमाओं के पार जाते रहते हैं, परन्तु इनका अपना
कोई भी
सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्यक्रम या एजेंडा नहीं होता है,
ये सिर्फ
गालियाँ देंगे, और विरोध में बड़ी-बड़ी बातें बोलेंगे|
राजनीतिक पाकेटमारों की भी यही स्थिति होती है| चूँकि सामाजिक समस्याएँ ही प्रायः राजनीतिक मुद्दा बनती हैं, इसलिए कुछ क्रान्तिकारी दिखते सांस्कृतिक-राजनीतिक दल भी “राजनीतिक पाकेटमारी” करते हैं| ये सामान्यत: छोटे- छोटे राजनीतिक दल होते हैं, जो भावनात्मक मुद्दों पर कुछ सीट जीत लेते हैं, परन्तु इन “राजनीतिक पाकेटमारों” की मुख्य प्रवृति या एजेंडा अपने आका दलों का सहयोग करना ही होता है| इन्हें भी ठीक से पहचानिए| इनमें तो कुछ ऐसे भी होते हैं,जो अपनी अवैध तरीकों से अर्जित जमा सम्पत्ति को बचाने के चक्कर में ऐसे ट्रैप में फंसे हुए रहते हैं|
सांस्कृतिक पाकेटमारों की समाज में कुछ भी नहीं चलती है| यदि कुछ चलती भी है, तो वे बहुत ही तुच्छ अवस्था में होते हैं| ऐसा इसलिए होता हैं, क्योंकि इस सांस्कृतिक क्षेत्र में घोटाला, अपहरण इत्यादि अपराध करने वाले बड़े-बड़े डकैत सक्रिय हैं, बड़े- बड़े आतंकवादी संचालनकर्ता हैं, बड़े- बड़े सफल सफेदपोश इसमें सक्रिय हैं| सांस्कृतिक पाकेटमारी या सांस्कृतिक चोरी या सांस्कृतिक अपहरण या सांस्कृतिक डकैती या सांस्कृतिक गड़बड़ी की प्रवृति एवं प्रकृति इन सबसे एकदम अलग है|
इन सभी की एक
विशेषता यह है, कि
इन्हें
“तथाकथित धर्म” के आवरण (Veil) में
बड़ी चतुराई
से अंजाम दिया जाता है|
चूँकि सामान्य जनों के लिए
धर्म एक अतिसंवेदनशील मामला होता है, और यह एक अति भावनात्मक मुद्दा भी होता है, इसीलिए इनके आड़ में यानि इनकी ओट में इसे बहुत आराम से, बड़ी ही दार्शनिक कलाबाजी और आत्मविश्वास के साथ अंजाम दिया जाता है|
आप भी अपने समाज के उपरोक्त वर्णित किस्म-किस्म के सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पाकेटमारों को ठीक तरह से पहचानिए|
निरंजन सिन्हा